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मेरे मन निराशा त्याग दे

apni baat
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मेरे मन निराशा त्याग दे

बुझी कामना को आग दे

मेरे मन निराशा त्याग दे

पुरुषार्थ की उंगली पकड़ विश्वास से कर मित्रता

तल्लीन हो बस लक्ष्य में मत देख जग की भिन्नता

आकाश जिससे मचल उठे ऐसा विलक्षण राग दे

मेरे मन निराशा त्याग दे

जितनी अधिक हों मुश्किलें उतना मज़ा है जीत में

जितना अधिक हो दर्द उतना रंग आता गीत में

इसलिए तू उठ मना नाकामियों को ख़ाक दे

मेरे मन निराशा त्याग दे

दुविधा पुरानी छोड़ दे अब नव-सृजन की बात कर

दुश्मनों को भूल जा और दोस्तों को याद कर

शक्तियों को कर गुणा कमजोरियों को भाग दे

मेरे मन निराशा त्याग दे

मेरे मन निराशा त्याग दे

बुझी कामना को आग दे ……………अंकुर आनंद

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