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क्या अधिकारी बनूँगा मैं तुम्हारे प्रेम का

apni baat
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मैं यदि प्रस्ताव रखूँ आज अपने प्रेम का
क्या अधिकारी बनूँगा मैं तुम्हारे प्रेम का
मैं आपकी मुस्कान के हर फूल का माली बनूँगा
आपकी खुशियों की खातिर रोज़ दिवाली बनूँगा
मैं हरियाली बनूँगा तुम बनो सावन यदि
मैं महासागर बनूँगा तुम बनो प्यासी नदी
आओ कार्यक्रम बनाएं एक जीवन श्रेष्ठ का
क्या अधिकारी बनूगा ………………

आओ के मेरी ज़िन्दगी को धन्यता दो
उजड़े हुए उपवन को एक पुष्पित लता दो
आओ के मुझको जीत का उल्लास दे दो
कंपकंपाते होंठ को मृदु हास दे दो
आओ के जीवन पुष्प खिलना चाहता है
मुरझाई कलियों को प्रिये मधुमास दे दो
आओ ना उत्सव मनाएं ज़िन्दगी के खेल का
क्या अधिकारी बनूगा ………………
…………अंकुर ‘ आनंद ‘

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